भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कलम / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
कलम काटकर मिट्टी में रोप दी गयी
और वो जमीन में घुलमिल गयी
कितना आश्चर्यजनक है यह मिलन
मिलन जो बड़े वृक्ष की शक्ल में बाहर आता हुआ
एक वृक्ष के छोटे से टुकड़े में भी इतनी सामथ्र्य।
सभी का जीवन लटका हुआ
इसी तरह से डालियों में
अनन्त संभावनाएं चूमता हुआ आकाश
करती है डालियां इंतजार
उन इच्छुक हाथों का,
चाहे बाग-बगीचे हों या घर
कोई चुनाव नहीं उनके पास
बस कहीं पर भी रोप दिया जाए उन्हें,
अनाथ बढ़ते हुए बच्चे चाहते हैं
उन्हें भी कोई उपयुक्त स्थान मिले, मिलें अच्छे हाथ
डालियां देखती रहती हैं हमारी ओर
करती रहती हैं हमारा इंतजार।