भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कलम / रश्मि रेखा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी कलम मिल गई है
एक लम्बे अर्से बाद
 मेरे पास वापस लौट रही है
मेरी लिखावट
मेरे अक्षर
मेरे शब्द और
मेरी वो अपनी दुनिया
बदल रही है मेरी भाषा

कलम तुम सुख में साथ होती हो
उड़ान भरते पंखों की तरह
दुःख में भी सँभालती हो तुम
सँभालती हैं माँ जैसे छोटे बच्चें को
शब्द
कलम
और मैं
इससे इतर भी गहरा रिश्ता है कहीं

शब्दों के जंगल में उगी हुई शाख मैं
अकेली नहीं हूँ
साथ हो तुम परछाईं की