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कलहान्तरिता / उत्पल बैनर्जी / मंदाक्रान्ता सेन
Kavita Kosh से
रसोई का काम ख़त्म हो गया
अब अनंत फ़ुर्सत है
वे ऑफ़िस चले गए हैं
ख़ाली-ख़ाली-सा घर पड़ा हुआ है
उतारी हुई कमीज़ पड़ी हुई है
एक जोड़ी नीली चप्पल
जो घर में पहनी जाती है,
गु़सलख़ाने में फैली हुई है जवाकुसुम की ख़ुशबू
और भी क्या-क्या पड़ा हुआ है!
चारों ओर भनभनाता हुआ ग़ुस्सा...
घर से निकलने से ठीक पहले
झगड़ा हुआ था, मानो उसी के दाग़
मानो, दंभ से भरी उस जय का
फटा हुआ परचम
पूरे घर में फहर रहा है
... ख़ाली-ख़ाली सा है घर...