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कला की सरपरस्ती / कंस्तांतिन कवाफ़ी
Kavita Kosh से
दिवास्वप्न की-सी हालत में मैं बैठा हूँ ।
कला में समाहित कर दी हैं मैंने
इच्छाएँ-अनुभूतियाँ
अस्पष्ट चीज़ें, चेहरे या रेखाएँ
कुछेक धुँधली यादें अपूर्ण प्रेम-प्रसंगों की ।
मुझे कला की सरपरस्ती में जाने दो :
उसे पता है कि सौन्दर्य के रूपाकारों को
कैसे अरेहा जाए, तक़रीबन अतीन्द्रिय भाव से
जीवन को पूर्णता देते हुए
प्रभावान्विति के साथ—
दिनानुदिन की चूलें बैठाते हुए ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल