भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कलादेवियाँ / बैर्तोल्त ब्रेष्त / उज्ज्वल भट्टाचार्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब फ़ौलादी मर्द उन्हें पीटता है
गाने लगती हैं
कलादेवियाँ
और ज़ोर से ।

सूज़ी हुई आँखों से
पूजती हैं
वे उसे
कुतियों की तरह ।

नितम्ब फड़कते हैं दर्द से
जाँघें हवस से ।

1953

मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य