भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कवि-कविता / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
बहुत बेचैन करती है
कविता
कुलबुलाती
आँतों को चीर कर बाहर आती
नींद में
शोर मचाती
सपनों को तार-तार करती
अँधेरे में बार-बार जगती
आधी रात
जगा देती है कविता
जब सारी दुनिया
बेसुध सोती
तब भी
जागता है कवि
कविता
र
च
ता.... ।
मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा