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कवि का रिक्त स्थान / शिव कुशवाहा
Kavita Kosh से
एक कवि का जाना
जैसे एक युग का अस्त होना
सूरज की किरणों की तरह
फैलती है उसकी कविता कि परिधि
अर्थ-संवेदना डूबती इतराती है
कविता कि अंतश्चेतना में।
भावसंपृक्ति के अलिखित दस्तावेज़
रखे रह जाते हैं
दिमाग की नसें भी दे जाती हैं जवाब
खुली आंखों से कवि देखता है संसार
और एक दिन
उड़ जाता है पक्षी की तरह,
अपने घरौंदे से
सब कुछ छोड़कर...
अपनी कविताओं में जिंदा रहता है ताउम्र
कवि जो बुनता है अपना रचना संसार
उसके ही इर्द-गिर्द ढूँढते हैं हम
साहित्य में कवि का रिक्त स्थान...