भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कवि जीवकान्तक प्रति / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
Kavita Kosh से
जीवकान्त जी!
अहाँक मृत्युक खबरि
जखन सुनौने रहथि प्रदीप बिहारी
लागल रहए हमरा
जेना माय-बापक अछैत
भऽ गेलहुँ
टुग्गर
पसरि गेल रहए
हमर चारूकात
अन्हार
खाली अन्हार।
अहाँ
अमृता, कोसी, कमला, गंडकी, गंगा, बागमती, बलान
खाड़ो, धेमुरा, लक्ष्मणा, त्रिभुगाक पानि बनि
प्रतिनिधित्व कयलहुँ
मिथिलासँ
बाहर
मिथिलाक
दिगन्त धरि।
अहाँक कविता पर गुमान करइए-
चिड़ै-चुनमुनी
उनचासो पवन
बाध-बोन
अकास, बिजुरी, बदरी, बरखा
आ सम्पूर्ण मिथिलाक जनपद।