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कविता-3 / भरत ओला
Kavita Kosh से
कविता लिखना
इतना आसान नही
जितना तुम सोचते हो
कविता
मां की सुलगती अंतड़ी है
मूंज की मांची पर पड़ी
डोकरी की पिड़ है
कविता
चूं-चूप नहीं
भूकम्प है, भूचाल है
कविता
झुग्गी में चीखते
बच्चे का रूदन है
चक्र पर घूमती नटी का विश्वास है
कविता
मजदूर की कनपटी का पसीना है
गाड़िया लौहार की धौंकनी है
कविता
बर्फ का फोहा नहीं
भीतर ही भीतर आंच खाती
भोभर है
इसलिए
मत सोचो
कविता लिखना आसान है