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कविता-दोय / मोहन सोनी ‘चक्र’
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हिवड़ै मांय
खावतो भचीड़
वो कोई एक ऐसास
जकै नैं
मांडणो अबखो
अर सुणावणो तो
वीं सूं ई अबखो।