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कविता (1) / कन्हैया लाल सेठिया

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कविता कोनी
गुंभारियै में
भर्योड़ो पालो
जकै नै
जचै जणां नीर दै
भर’र खारियो,
कविता कोनी
गाय’र भैंस
जक्यां रै दे’र नाणो
बैठ ज्या दुहण नै
टेमो टेम
ले’र गोवणियो
कविता तो
बसंत रो बधाऊ
भंफोड़
जको आ ज्यावै
चाणचक बारै
कर’र अणमणी धरती रै
गिदगिदी !