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कविता - 12 / योगेश शर्मा
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मैंने जब प्यार किया,
तो पठारों पर नीले रंग के फूल खिले,
गुलाबी पंखुड़ियों से झर झर करके रस बहा,
झील के किनारे की जमीन गीली हो गयी।
आखिर तुम कौन हो?
कोई कालजयी चरित्र हो
किसी बेहद चर्चित उपन्यास का?
या कोई महाकव्य हो?
परन्तु,
मेरे लिए तुम,
एक कविता हो...
दस बीस पंक्तियों में सार्थक सिमटी हुई।
मैंने जब प्यार किया
तुझे अपनी कविता समझकर किया,
उस कविता की तरह जिसे कवि कभी बांटता नही
जो लिखी जाती है, निज हिताय निज सुखाय।
यह कविता मैं पढूँगा सारी उम्र...
सब स्वप्नों पर सर्वाधिकार सुरक्षित रखकर
सब अक्षरों के धुंधले होने तक।
मेरी बेबसी, हाय!
मैं इसे कहीं प्रकाशित नही करवा सकता।