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कविता एक चिड़िया-सी / पूरन मुद्गल
Kavita Kosh से
कैसे रहे होंगे वे हाथ
जिन्होंने चिड़िया का चित्र बनाया
बहुत बार उड़े होंगे/आकाश की ऊंचाईयों में
कितनी बार सुनी होगी
चिड़िया की चहकती
बच्चे की तुतली मिठास में
और सारी उम्र किया होगा
चिड़िया-सा घोंसला बनाने का जतन
उड़ती
चहकती
तिनके चुनती
घोंसला बनाती चिड़िया
घोंसले से गिरते हुए तिनके
वह
उठाता
सहेजता
और
करता रहता
चिड़िया-सा घोंसला बनाने का अभ्यास
क्योंकि रोज आ बैठती
एक चिड़िया उसके भीतर।