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कविता और जोकर / सरोज कुमार
Kavita Kosh से
वे मेरी कविताएँ सुनने नहीं आए हैं।
समारोहों में सजधजकर जाना
और कविता तक आना
दो अलग-अलग बाते हैं।
वे मेरी कविताएं सुनने
नहीं आए हैं।
कल वे मुझे
सरकस में दिखे थे,
जोकरों की फूहड़ तुकबंदी पर
उछल-उछल दाद देते हुए।
जोकरों में कविता खोजने वाले,
कविता में
जोकर खोजने आते हैं।
वे मेरी कविताएँ सुनने नहीं आए हैं।