भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता का मूल्य / मनोज श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कविता का मूल्य


मंदी या हाट से उठाकर
विदेशी बाजारों से तस्करीकर
या, रातों-रात कालाबाजारी कर
नहीं लाया गया है इसे

इसे अपनी फैक्ट्री में तैयार किया गया है
बाकायदा अपने ही कच्चे मालों से
अपनी मेहनत-मजूरी से
इसकी गुणवत्ता को निखारा गया है;
तुम बेशक! इसे जांच-परख लो
और इसकी कीमत आँक लो

हां, तुम्हें ही करना है
इसका मूल्य-निर्धारण,
यह काम सिर्फ तुम्हारा है
अपने दिलचस्पी की करेंसी नोटों से
इसका जायज मूल्य चुकाना है.