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कविता के कारख़ाने / भावना मिश्र
Kavita Kosh से
सीखने पड़ते हैं कई क़ायदे धीरे-धीरे
मसलन
सिर्फ प्रेम की खातिर नहीं होता प्रेम
सिर्फ याद की खातिर नहीं होती याद
प्रतिरोध भी नहीं होता सिर्फ प्रतिरोध की खातिर
मौन का परम उद्देश्य भी है कुछ अलग ही
गाँव, देहात, आँगन, गाय-गोरु
नदी, पहाड़, झरना
और अम्मा – बाबू भी
इन सब का होना है
एक महान सार्थक उद्देश्य के लिए होना
इनके होने से ही तो हैं
वे सारे अवयव
जिन्हें बिम्ब, शिल्प में गढ़कर
चलाए जा रहे हैं
कविता के कारखाने