कविता रहेगी / कौशल किशोर
सत्ता की संगीनों के बीच है कवि
बाड़े और बेड़ियों से
सिपाहियों ने उसे घेर रखा है
और इस घेरे में भी
वह मुस्कुरा रहा है
चेहरा दमक रहा है
हाथ उठे हैं
मुट्ठियाँ बंधी हैं
काले बादलों को चीरता सूर्य चमक रहा है
कहते हैं कलम कुछ कर नहीं सकती
उससे कुछ हो नहीं सकता
फिर कलम से
इस कदर क्यों डरती है सत्ता
कि कलम का सिर
कलम करती रहती है सत्ता
कवि बड़ा खतरनाक है
वह कविता लिखता है
जीवन के गीत गाता है
क्रान्ति की धुन पर थिरकता है
हाँ, उनके लिए बड़ा खतरनाक है कवि
और उसके जीवन को खत्म कर देने के
हजार उपक्रम जारी है
पर यह सत्ता है जो काट रही उसी डाल को
जिस पर वह बैठी है
उसे क्या पता है कि
एक आदमी खत्म हो सकता है
जीवन खत्म नहीं हो सकता
एक कवि मर सकता है, मारा जा सकता है
कविता कभी मर नहीं सकती
उसका लिखा जाना
प्रतिबंधित किया जा सकता है
फिर भी कविता लिखी जाएगी
कागज पर न सही
मन में वह रची जाएगी
जन-जन में पढ़ी जाएगी
गीतों में गूंजेगी
स्वर लहरियों में लहरायेगी
तोड़ भाषा की दीवार वह छा जायेगी!
कवि रहे, न रहे
कविता रहेगी
उसके स्वप्न को साकार करेगी!