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कविता है तुम सबकी / सुनीता जैन

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मैं क्यांे कहती हूँ,
यह मेरी कविता है?

इसमें क्या
मेरा है?

वाचा से वाक् लिया,
माँ से अपनी, शिक्षा,
गुरुजनों से दृष्टि ली,

पढ़-पढ़ उसको
माँजा,

सृष्टि से संगीत लिया,
वृष्टि से घट रस का,
बाकी बचा
रुदन तो,
वह भी तुमसे,
सदा लिया-तुम से, तुम से, तुम से,
लिया दंश उर तीखा!

अब जो भी झरता,
मुझको परि-
भाषित करता-
वह सब, कहो, कहाँ
कुछ मेरा?

कविता है तुम सबकी,
कविता केवल,
कविता