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कविता होने में / नंदकिशोर आचार्य

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कविता होने में
खंडहर हो जाता शब्द
एक अस्तित्व स्मृति हो गया जैसे
बदरंग स्मृति,
रेत जिस पर छायी जाती।

सदा ही हरा रहे यह जख्म़
कहीं खंडहर न हो जाये
कविता में इसीलिए
मैं नहीं लिखता हूँ
तुम्हारा नाम

(1991)