कविताओं से किया मैंने गुरिल्ला इश्क / लोकमित्र गौतम
लैपटॉप बस शट डाउन करने ही वाला था
कि वो हुआ जो इन दिनों पहले भी कई बार हो चुका है
मेरी निगाहें ठिठक गयीं और होंठ बुदबुदाए
मिल गयी
शुरूआती पंक्तियाँ पढ़ते ही दिल की धडकने तेज हो गयीं
और आँखों में हलकी हलकी रौशनी बढ़ने लगी
मैंने होंठों की आकृति गोल करके हवा में एक किस उछाली
और जैसे खुद को ही बताया
निजार कब्बानी की वो प्रेम कविता मुझे मिल गयी
जिसे मैं पिछले एक घंटे से गूगल में सर्च कर रहा था
हाँ,वही दो घंटे पहले फेसबुक में मैं जिसकी चर्चा सुनकर रोमांचित था
ओह माय लव
अरब के धूसर रेगिस्तान में प्यार का लहलहाता आख्यान
जिसने अरब में तहलका मचा दिया था
जिसने अलेप्पो की हवाओं को आवारा कर दिया था
जिसने दज़ला फरात के पानी को नशीला कर दिया था
वही,ओह माय लव ...
अरब के सन्नाते रेगिस्तान में,पूरे गले की पहली पुकार
यह कविता नहीं सिम्फनी है
रेत के आसमान में इतराती बलखाती नदी
मैं इसमें जरा सा नीचे उतरा और बहने लगा
दो घूंट पानी पीया और बहकने लगा
न जाने कब तक बेसुध रहता
कि तभी फोन की घंटी बज उठी
अनुमान के मुताबिक पत्नी का ही फोन था
‘गए कहीं आज काम ढूंढ़ने या...’
उसने बिना किसी भूमिका के सीधे सवाल किया
और जानबूझकर इनवर्टेड कामा के एक भरे पूरे वाक्य को
उसके अंत में अधूरा छोंड़ दिया
क्योंकि मुझे पता था कि आगे उसे क्या बोलना है
और वो भी जानती थी कि मैं जानता हूँ
इसलिए समझदार के लिए इशारा बहुत था
उसका सवाल सीधा था और वाजिब भी
क्योंकि इस बारे में सुबह ही हमारी बात हुयी थी
पत्नी का ही फोन आया था और उसने कहा था
आज काम ढूंढने चले जाना..घर में ही न बैठे रहना
आज प्रेशर थोड़ा कम है,मैं संभाल लूंगी दफ्तर
मैंने कहा ठीक है, ऐसा ही करूँगा
मेरा खुद का भी यही इरादा था
मुझ पर उसे वैसे तो भरोसा खूब है
फिर भी डेढ़ हज़ार किलोमीटर दूर है
तो इतनी असुरक्षा तो आदत का हिस्सा हो ही जाती है
कि सोच ले ऐसा होगा भी या नहीं
शायद इसीलिए उसने फोन रखने के पहले
पुनश्च की शैली में दोहराया भी था
लापरवाही मत करना
ऐसे काम नहीं मिलता
माना तुम बहुत टैलेंटेड हो
लेकिन कंपटीशन देख रहे हो न
इसीलिए कहती हूँ लापरवाही मत करना
...और हाँ, इस पढने सढ़ने की लत से
कुछ दिन दूर रहो,जीवन भर पढ़ते ही रहे हो
और आगे भी पढना ही है
यह कहते हुए वह कुछ दिन और दूर रहना
के बीच कुछ पल के लिए ठिठकी थी
शायद कुछ दिन के आगे वह कुछ और जोड़ना चाहती थी
कि मुझे वास्तव में किस चीज से बचना है
लेकिन मुझे कहीं बुरा न लग जाए
इसलिए उसने अपनी नसीहत को बहुत स्पष्ट नहीं किया
एक सामान्य नसीहत ही बनाए रखा
हालांकि मैं समझता था
कि अगर वह आगे जोड़ेगी तो क्या जोड़ेगी?
और वो भी समझती थी कि मैं समझता हूँ कि उसके ठिठकने का मतलब क्या था?
इसलिए उसने आधी अधूरी चेतावनी के साथ ही फोन रख दिया
पर मैं आप सबको बता दे रहा हूँ कि वो जहाँ ठिठकी थी
वहां दरअसल वह क्या कहना चाहती थी
वास्तव में वह मुझे कविताओं के प्रति आगाह करना चाहती थी
कविताओं के साथ मेरे इश्क को लेकर वो
अकसर असहज रहती है
हालांकि कविताओं के साथ मेरा कोई
बहुत आदर्श किस्म का और बहुत व्यवस्थित लव अफेयर कभी नहीं रहा
पर हाँ, मेरा उनके साथ गुरिल्ला इश्क जरूर है
जो तमाम व्योहारिक अड़चनों के बाद भी कभी ख़त्म नहीं हुआ
उल्टे दिन पर दिन गाढ़ा ही होता जा रहा है
शायद इसलिए कि यह हम दोनों के लिए मुफीद है
इसीलिए कभी मैंने मौका ढूंढा, कभी कविताओं ने
कभी मैंने जरिया तलाशा, कभी कविताओं ने
कभी मैंने कविताओं को बेवकूफ बनाया,कभी उन्होंने मुझे
लब्बोलुआब यह कि हमने एक दूसरे को कभी हंसाया है, कभी रुलाया है
कभी छकाया है ,कभी सताया है
शायद हम दोनों ने ही एक दूसरे को अराजक बनाया है
या फिर यह हमारे इश्क का गुरुत्वाकर्षण है
कि हम सारे सामान्य नियम भूल गए
तरीका भूल गए ,यहाँ तक कि इश्क के लिए जरुरी
माहौल बनाना भी भूल गए ,जब मौका मिला तभी कर लिया
हमें इश्क का कोई तय कायदा नहीं पता
हमें इश्क का कोई तय उसूल नहीं पता
हमारे लिए पहले से ही सुरक्षित, संरक्षित तमाम सीखें बेईमानी हैं
मैं अकेले रहता हूँ तो दाल में तड़का मारते हुए भी
मेरा इश्क चलता रहता है
इसका भी मज़ा है
इसका भी नशा है
कभी करके देखो मेरे साथ तो बहुत बार हुआ है
कि मैंने तड़के में प्याज की जगह आलू काट दिया
फिर भी दाल के स्वाद ने अंगुलियाँ चटवायीं
न जाने कितनी बार इन कविताओं ने मेरी सजगता छीन ली है
और मेरी चाय बिना चीनी के बनी
फिर भी मजाल है कि ज़रा भी फीकी लगी हो
लेकिन इश्क कभी न कभी तो रंगे हाथों पकड़ा ही जाता है
जैसे मैं आज पकड़ा गया
फ़ोन पत्नी का ही था
उसने फिर सीधा पूछा था, आज कहीं गए?
वो ..वो...! ... मैं हकला रहा था