भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कशमकश / उज्ज्वल भट्टाचार्य
Kavita Kosh से
देख न पाना
सुन न पाना
देखते हुए
सुनते हुए
समझ न पाना
जितना समझा
उसे समझा न पाना
गुस्सा न आना
बेवजह गुस्से से
रास्ते से भटक जाना
मायूस हो जाना
फिर उससे उबरकर
एक क़दम
हाँ, एक क़दम ही सही
आगे बढ़ाना।