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कशमकश इतनी रही है या नहीं / पूजा श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
कशमकश इतनी रही, है या नहीं
ये नहीं होता, तो ये होता नहीं
बाबुजी से ये शिकायत रह गयी
आपने सब कुछ अभी बाँटा नहीं
क्या दरख्तों में अभी तक साँस है
क्यूँ परिंदा छोड़कर जाता नहीं
आईने से सीखना है संगदिली
टूट तो जाता है पर रोता नहीं
फर्क छोटे और बड़े का भूलना
कायदे से हमने ये सीखा नहीं
घर के पर्दों में भी डर है आज तक
माँ अगर कह दे तो ये उड़ता नहीं
बेटियों को मारने वालों सुनो
राम न हों गर हों कौशल्या नहीं
होंगी घर की जड़ में ही चिंगारियाँ
खुद ब खुद रिश्ता कहीं जलता नहीं