कश्मीर- मेरे बचपन की तस्वीर / त्रिभवन कौल
आँखों में तेरते हैं बचपन के वह नज़ारे
मल्लाहों का नाव खेना, रस्सियों के सहारे
कर और मुठ लेना बर्बूज़ के पास जाके
डुबकी लगाना, मंदिर के किनारे
आँखों में तेरते हैं बचपन के वह नज़ारे
जाके अमीराकदल नावों की दौड़ देखना
ऊँगली पकड़ नानी की, पर्वत पर पूजा करना
शंकराचार्य की पहाड़ी पर दौड़ के फिर चढ़ना
तारक हलवाई के यंहा न्दुरमुन्ज खाना
बहूर कदल जाके मछलियों को लाना
आती है याद हमको कश्मीर की वह बहारें
आँखों में तेरते हैं बचपन के वह नज़ारे
डूंगों में बैठ, हम सब का तुलमुल को जाना
पूजा अर्चना कर देवी राग्यना को मानना
धमाल मचाना और लूचियाँ भी खाना
सिनेमा की तरह देखता हूँ बीते हुए फ़साने
आँखों में तेरते हैं बचपन के वह नज़ारे
पानी की सोटी और दूध की रोटी
कहवे के साथ तख्ठची मोटी
हाक- बत का था जवाब नहीं
खान्दर के जैसा कोई साल नहीं
दूर चले गए जो नज़दीक थे हमारे
आँखों में तेरते हैं बचपन के वह नज़ारे
जील डल के सीने पर फिसलते शिकारे
निशात, शालीमार की वह जन्नती सैर
रिश पीर की दरघाह पर, मांगे सब खैर
ज़ाफ़रानी खुशबु, दिलकश आबशारे
भूले न भुलाये वह स्वर्ग के नज़ारे
आँखों में तेरते हैं बचपन के वह नज़ारे
कहाँ तक बयां करे, समझ नहीं आता
जो रह जाते स्वर्ग में ईश्वर, तेरा क्या जाता?
शायद नियति यही की दुनिया में फ़ैल जांए
सारी दुनिया में फैल कर अपना डंका बजाये
श्राप है या है दुआ इस में, मैं नहीं जानता
सुलझेगा एक दिन मसला कश्मीर का
कश्मीरियत से ही यह मैं हूँ मानताI