भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कह रहे औज़ार साये से कि घबराये नहीं / विनय कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कह रहे औज़ार साये से कि घबराये नहीं।
पेड़ कटते हैं कहीं भी पेड़ के साये नहीं।

ज़ुल्म की आदत उन्हें चाहत सुक़ूते मर्ग की
ज़ख्म से उम्मीद रखते हैं कि चिल्लाये नहीं।

चोंच में अपनी दबाकर ले गयी चिड़िया गुलेल
फ़िक्र तो होगी उन्हें कि नज़ीर बन जाये नहीं।

ताउफक़ गीला अंधेरा, ग़ुम सुराग़े रोशनी
कुफ्ऱ है ग़र तू ज़हन में आग भड़काये नहीं।

क्या ज़रूरत वज्म की है तू अगर है रू-ब-रू
क्या ज़रूरत वज्म की गर तू नज़र आये नहीं।