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कहत जनक रीखि सुनिय हेमत रीखि / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

लड़की का पिता लड़के के पिता से बेटी के अपराधों को क्षमा करने का आग्रह करता है। लड़के का पिता उत्तर देता है- ‘आपको अपनी बेटी को ही शिक्षा देनी चाहिए कि वह सास की सेवा अच्छी तरह करे। अगर आप पहले से ऐसी शिक्षादेते तो मुझसे अनुरोध करने की जरूरत ही क्या थी?’ पिता ने बेटी से सास की सेवा करने का आग्रह किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने ससुराल में छोटै बड़े सबकी इज्जत करने और उचित सम्मान करने की भी उसे शिक्षा दी। बेटी ने पिता से ऐसा करने का आश्वासन देते हुए गलतियों को क्षमा करने और जल्दी-जल्दी खोज-खबर लेते रहने का अनुरोध किया।
वही बेटी ससुराल में सानद रह सकती है, जो सबका खयाल करते हएु, विशेषकर अपनी सास की सेवा-शुश्रुषा में संलग्न रहे। भारतीय नारी के जीवन की सबसे बड़ी सफलता यही है।

कहत जनक रीखि सुनिय हेमंत रीखि, सूनि लेहो बिनती हमार हे।
बारि<ref>कम उम्र की</ref> सीता दाय सासुर जाय छथि, छेम<ref>क्षमा</ref> करब अपराध हे॥1॥
एतना बचन की कहत जनक रीखि, की मोहि देल बुझाय हे।
एतना बचन जब कनेया के सिखबितों, राखितों कोसिलाजी के मान हे॥2॥
पैर धै खँसल<ref>गिर पड़ी</ref> सीता, हाथ धै लेलऊँ उठाय हे।
गुन अबगुन बाबा मन जनु राखब, झट झट करब पुछारि<ref>पूछ-ताछ; किसी को भेजकर समाचार लेना</ref> हे॥3॥
हाथ धै उठाय बाबा गोद बैठाय के, कहे लागलन सीता समुझाय हे।
छोट आरो बड़ बेटी सबहिं बैठायब, सबहिं के राखब मान हे।
कोसिला रानी के चरन सेवा करिहऽ, तबै रहिहऽ ओहि ठाम हे॥4॥

शब्दार्थ
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