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कहते "इस प्रणयी से पूछो क्यों व्योम जलद से भर जाता। / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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कहते "इस प्रणयी से पूछो क्यों व्योम जलद से भर जाता।
क्यों स्निग्ध-शान्त सोये शिशु-मुख पर ‘पंकिल’ हास बिखर जाता।
है मुझे ज्ञात क्यों दीप-शिखा पर शलभ कलेवर दहता है।
क्यों उडु-नवनीत-हेतु अरूणिम संध्या-घन-दधि रवि मथता है।
पतझर-परिछन्न-निशा में भी मकरंद उदधि क्यों बहता है।
क्यों नित्य प्रतीची-प्राची मुख पर अरूण लालिमा मलता है”?
ढूँढ़ती प्रबोधन-पटु ! तुमको बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥57॥