भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहबामे असुविधा अछि / मार्कण्डेय प्रवासी
Kavita Kosh से
आइ मोनक बात कहबामे असुविधा अछि।
की कही, की नहि कही, से पैघ दुविधा अछि !!
सहसहाइछ साँ, गोजर,
भालु, बाघक दल
साँच अछि संग्राममे
अछि शान्तिमे छल-बल
साधना टा सिद्धि-यज्ञक आइ समिधा अछि !
आइ मोनक बात कहबामे असुविधा अछि !!
आइ झूठक तुला पर
सत जा रहल जोखल
कण्ठ प्रज्ञावान लोकक-
जा रहल मोकल
आइ संख्या-बलक सोझाँ मूक प्रतिभा अछि !
आइ मोनक बात कहबामे असुविधा अछि!!
अछि दधीचिक मार्ग पर
चलने बहुत संकट
स्वीकृतिक राधा रखैए
आइ खाली घट
आई अर्थविहीन भाषण मात्र कविता अछि !
आइ मेनाक बात कहबामे असुविधा अछि !!