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कहा पप्पू ने / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
कभी तो लू-लपट, अंगार हैं ये गरमियों के दिन,
कभी लगता कि रस की धार हैं ये गरमियों के दिन।
कहा पप्पू ने अलसाकर कि कैसे घर से निकलूँ मैं,
बड़े गुस्सैल थानेदार हैं ये गरमियों के दिन!
कभी हैं केवड़ा-लस्सी, कभी शरबत, कभी कुल्फी,
अजी, ठंडाई की बौछार हैं ये गरमियों के दिन।
मगर यह धूप दुश्मन है-तुनककर भैंस यह बोली-
हमें लगता है, सूखा ताड़ हैं ये गरमियों के दिन!
नहीं तालाब में पानी-शिकायत कुत्ते जी की है,
कहा बिल्ली ने-बरखुरदार, हैं ये गरमियों के दिन!