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कहाँ सही है / भाऊराव महंत
Kavita Kosh से
धोती खोल पहनना पगड़ी,
कहाँ सही है।
पीकर छाँछ बताना रबड़ी,
कहाँ सही है।।
करते हैं कुछ लोग यहाँ पर,
मात्र दिखावा।
जिसके कारण होता उनको,
है पछतावा।
ग्रीष्मकाल में सेकें सिगड़ी,
कहाँ सही है।।
धन्ना सेठ समान जताते,
खूब रईसी।
ज्ञान पिलाते जैसे कोई,
विज्ञ-मनीषी।
दुबली को बतलाये तगड़ी,
कहाँ सही है।।
अपनी बकबक करते,सुनते-
जो न किसी की।
वाक् चतुरता दुर्गति करती,
सदा उन्हीं की।
फँसी न हो जाले में मकड़ी,
कहाँ सही है।।
अपने पैरों आप कुल्हाड़ी,
मारा करते।
स्वयं गलतियाँ कर जीवन में,
हारा करते।
निज कर्मों में देना टँगड़ी,
कहाँ सही है।।
देखा अक्सर घर का चावल,
कुत्ते खाते।
मूर्खों जैसे लोग कमाने,
कनकी जाते।
आम छोड़ खाना कटु-ककड़ी,
कहाँ सही है।।