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कहाँ हैं वे पाँव / नईम
Kavita Kosh से
कहाँ हैं वे पाँव-
जिनकी धूल माथे से लगा लूँ।
आरती उठकर उतारूँ,
पुन्यभागा नर्मदा के
शुद्ध जल से
कठौता भरकर पखारूँ।
कहाँ हैं वे पाँव?
कहाँ है वे गाँव-
बरगद पिता
तुलसी: माँ समर्पित
मानवी देवात्माएँ,
कड़कड़ाती ठंड में भी प्रार्थित
जल ढारती, दृढ़ आस्थाएँ;
क्या बताएँ
कहाँ हैं वे पाँव
जिनसे जुड़े थे हम,
कहाँ खोजूँ-
कहाँ जाऊँ-
ठीक आगे छावनी
पीछे कहीं लश्कर पड़े हैं!
कै़द अपनी खोह में हम
चौतरफ जनतंत्र के प्रहरी खड़े हैं!