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कहानी एक हिन्दुस्तानी की

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'मैं अपनी सदी का बेटा हूँ'1
सदी का दूसरा महायुद्ध जीते हुए
अपनी सदी जैसी,मेरी मां ने
अपना पहला दुःख धारण किया

और सन चालीस की एक रात
मुझे,अपने पराधीन दुःख को
जन्म दिया

और
याद है मुझे
खेत की मेड़् पर
बस्ता उठाये खड़ा मैं
और खलिहान के पास
काले टटटू पर सवार एक गोरा
हवा में लहराता हुआ कोड़ा
पिछले पाँवों पर खड़ा
मिनमिनाता टटुआ
और गेहूं के ढेर पर गिरा
ख़ैरदीन
सा'ब को सलाम नहीं करता है
लोग कह रहे हैं
बड़ा आया
सुराजियों का दम भरता है

फिर
'छोड़् जाओ मेरा देश !
फिज़ाओं में गीत बनकर गूँजता है
गुलिस्ताँ की बुलबुल का नारा
'हिन्दी हैं हम वतन हैं
हिन्दोस्तां हमारा'

एकाएक
बादल के पलने से झूलता सूरज
आग का गोला बनकर उछलता है
बुलबुलों की चहक
तपती दोपहर के वीराने मे
सहम जाती है
दिन-दहाड़े बोतल का जिन्न
धुआं बनकार फैलता है
नफरत का धुआं
मेरी नन्हीं आँखों में भर गया है
2पत्ती लाँघकर

3ढक्की चढ़ते हुए
कहीं मेरा बस्ता गिर गया है
अगस्त की काली शाम
पेशावर शहर पर चुड़ैल बनकर उतर आई है
मास्टर असगर अली
हमें अलविदा कहने आये हैं
हम लारियों में बैठ चुके हैं
मास्साब ने हथेली की आढ़् में
अपने धुंधले चश्मे को छिपा लिया है
वो मेरे सर पर हाथ फेरते हैं
और कहते हैं :
अब तो आँखों में मोतिया उतर आया है
ख़ुदा जानता है
मुझे कुछ नहीं दिखता

सात साल का एक बच्चा
टूटा पुतला उठाये
पिता की अंगुली पकड़े
दिल्ली की सड़कों पर चल रहा है
नालियों में
गलियों में
बही बदबू है
यमुना के उदास पानियों में
आदमी और जानवर
दोनो का लहु है
नेकी है,बदी है
जिसके बरसाती माथे से उगता है
पंदरह अगस्त. सैंतालीस का टूटता सूरज
लाल किले की प्राचीरों में
झंडा उतरता है
झंडा चढ़ता है
मेरी याददाश्त में बल पड़ता है
मैं टूटा हुआ पुतला
किनारे रखकर
मुस्कराता हूं और सोचता हूं
बापू से कहूंगा
नया बस्ता ले दो

मैं एक आम आदमी
कैसी टूटती सदी का बेटा हूं
बटवारा-दर-बटवारा
ईंट-दर-ईंट
किराये के मकान की
मरम्मत करवाता हूं
हर महीने बजट बनाता हूं
और बजट-दर-बजट
दौड़ता चला जाता हूं

युग बीता
एक दिन मैंने पिता से पूछा था :
'बापू ! पाकिस्तान की हुंदा ए ?'
आज मेरा बेटा मुझसे पूछता है :
'ख़ालिस्तान की हुंदा ए,पापा ?'
ओर
लाजवाब पिता
अख़बारों और नारों के जंगल में
खो जाता है
जोगियों ! सिद्धों !
मुझे बताओ कि क्यों हर बार मेरा देश
मुझ से बेगाना हो जाता है।



1. नाज़म हिकमत की एक पंक्ति
2. गली के बाहर लगा दरवाज़ा
3. चढ़ाई