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कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा / अज्ञेय

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कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा
     भानमती ने कुनबा जोड़ा
     कुनबे ने भानमती गढ़ी
     रेशम से मांडी, सोने में मढ़ी
     कवि ने कथा गढ़ी, लोक ने बाँची
     कहो-भर तो झूठ, जाँचो तो साँची

07.11.86