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कहे जनकपुर के नारि राम से / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कहे जनकपुर के नारि राम से, चलहुँ भमन<ref>भवन; घर</ref> हमारी कि हाँ जी।
आबल महल हमर रघुनन्नन, अति भाग हमारी कि हाँ जी॥1॥
कंचन थारी कंचन केर झारी, लावल गंगाजल पानी कि हाँ जी।
चरन पखारि चरनोदक लीन्हे, है बड़ भाग हमारी कि हाँ जी॥2॥
जे मन लागे सीरी राम ललाजी, देवे सखिन सभ<ref>सब, सभी</ref> गारी कि हाँ जी।
जनकपुर के भाग<ref>भाग्य</ref> उदे<ref>उदय</ref> भेल, धन धन<ref>धन्य-धन्य</ref> भाग हमारी कि हाँ जी॥3॥
बासमती<ref>एक प्रकार का महीन और सुगंधित चावल</ref> चाउर<ref>चावल</ref> के भात बनावल, मूँग रहड़<ref>अरहर</ref> के दालि कि हाँ जी।
कटहर, बड़हर, सीम आउ लउका, करइला के भुँजिया बनाये कि हाँ जी॥4॥
भाँजी, तोरइ, बैंगन आउ<ref>और</ref> आलू, सबके अचार परोसे कि हाँ जी।
बारा, बजका, दिनौरी, तिलौरी, आउ कोहड़उरी परोसे कि हाँ जी॥5॥
भभरा, पतौड़ा, पापर, निमकी, सबहिं भाँति सजायो कि हाँ जी।
गारी गावत सभ मिलि नारी, राम रहल मुसकाइ, कि हाँ जी॥6॥
राउर<ref>आपके</ref> पितु रसरथ हथ<ref>है</ref> गोरे, तूँ कइसे हो गेल कारे कि हाँ जी।
तोहर मइया बहुत छिनारी, तूँ परजलमल पूत कि हाँ जी॥7॥
बहिनी तोर साधु सँधे<ref>साथ में, संग में</ref> इकसल<ref>निकल गई</ref> फूआ के कउन ठेकाना कि हाँ जी।
सात पुस्त<ref>पुश्त, पीढ़ी</ref> तोर भेलन छिनारी, तुहूँ छिनार के पूत कि हाँ जी॥8॥
गारी परम पियारी हइ रघुबर, सुनूँ सुनूँ परेम के गारी कि हाँ जी।
मुसुकत राम मुसुके भाइ लछुमन, धन धन भाग हमार कि हाँ जी॥9॥
भोजन करि के किये अचमनियाँ, दीन्हें खरिका झारी कि हाँ जी।
पोंछ हाथ रेसम के रूमलिया, बइठल सेज सँभारि कि हाँ जी॥10॥
एतबर<ref>इतनी बड़ी</ref> उमर<ref>उम्र</ref> हमारी जी नारी, नइ खायो ऐसी जेमनारी<ref>जेवनार, भोजन</ref> कि हाँ जी॥11॥

शब्दार्थ
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