भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहें क्या उन्हें जो उनींदे पड़े हैं / पुरुषोत्तम प्रतीक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहें क्या उन्हें जो उनींदे पड़े हैं
सभी जानते हैं कि चिकने घड़े हैं

बिछी है वहाँ भूख बारूद बनकर
अहिंसक यहाँ आग लेकर खड़े हैं

लगातार अन्याय को न्याय कहना
यही तो सही के ग़लत आँकड़े हैं

झुके तो झुके के झुके रह गए हम
नियम प्रार्थना के बहुत ही कड़े हैं

हमारी कहानी नज़र कह रही है
मगर शब्द अब तक गले में अड़े हैं

जहाँ कुर्सियाँ भी लहू माँगती हों
वहीं ज़िन्दगी के हवाले बड़े हैं

सुना है यहाँ भी सदी बीसवीं है
मगर ये बताओ कहाँ पर खड़े हैं