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क़ैदी / उदय प्रकाश
Kavita Kosh से
वे तीन थे
और जैसे किसी जेल में थे
भीतर थी एक संकरी-सी कोठरी
जिसके भीतर सिर्फ़ उनका ही संकरा-सा जीवन
और उनकी ही थोड़ी-सी साँसे थीं
एक संतरी की तरह टहलता था
दूसरा वार्डेन की तरह देता था हिदायतें
कविता के सख़्त क़ायदों के बारे में
तीसरे को
दोनों ऎसे देखते थे
जैसे देखा जाता है कोई क़ैदी ।