भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क़ैदी जो था वो दिल से ख़रीदार हो गया / अमीर मीनाई

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


क़ैदी जो था वो दिल से ख़रीदार हो गया
यूसुफ़ को क़ैदख़ाना भी बाज़ार हो गया
 
उल्टा वो मेरी रुह से बेज़ार हो गया
मैं नामे-हूर ले के गुनहगार हो गया
 
ख़्वाहिश जो रोशनी की हुई मुझको हिज्र में
जुगनु चमक के शम्ए शबे-तार हो गया
 
एहसाँ किसी का इस तने-लागिर से क्या उठे
सो मन का बोझ साया -ए-दीवार हो गया
 
बे-हीला इस मसीह तलक था गुज़र महाल,
क़ासिद समझ कि राह में बीमार हो गया.
 
जिस राहरव ने राह में देखा तेरा जमाल
आईनादार पुश्ते-ब-दिवार हो गया.
 
क्योंकर मैं तर्क़े-उल्फ़ते-मिज़्गाँ करुँ अमीर
मंसूर चढ़ के दार पे सरदार हो गया.