भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कागलो / मधु आचार्य 'आशावादी'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुंडरै पर कागलो आयो
फेरूं बडेरां री याद आई
बां री साख
बां री रीत
बां रो प्रेम
हेत
अर खेत
जिण खातर बडेरां री जान गई
उणी खेत री
मुंडेर आयो कागलो
जद -जद बो आवै
बडेरां री याद दिरावै
हेत माथै
जाणै फावड़ो चलावै ।