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काग़ज़ / अब्दुल बिस्मिल्लाह

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काग़ज़ का यह छोटा-सा टुकड़ा
अपने दिल पर
दु:ख़ लिख सकता है किसी का
यह ख़त लिख सकता है
किसी के नाम
अपने सीने पर

अपने चेहरे पर
फ़ैसला लिख सकता है यह
कैसा भी

काग़ज़ का यह छोटा-सा टुकड़ा
अपनी हथेली पर
पूरी की पूरी तबदीली
लिख सकता है