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काट रहे हैं फीते लोग / लाला जगदलपुरी
Kavita Kosh से
उन्मन हैं मनचीते लोग,
वर्तमान के बीते लोग ।
भीतर-भीतर मर-मर कर,
बाहर-बाहर जीते लोग ।
निराधार ख़ून देख कर
घूँट ख़ून के पीते लोग ।
और उधर जलसों की धूम
काट रहे हैं फीते लोग ।
भाव-शून्य शब्दों का कोश,
बाँट रहे हैं रीते लोग ।