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कादम्बरी / पृष्ठ 58 / दामोदर झा

79.
आयल होश ज्ञान पुनि पओलनि पुरना दुख मन जागल
तहिखन भेल जकाँ अनुभव कय विलपय कानय लागल।
गाछहुँ पाथरके विलाप सुनि जेना हृदय फाटल हो
प्रतिशब्दहुसँ भरल दिशा जनु खसय गाछ काटल हो।

80.
चन्द्रापीड़ नीर भरि लोचन कहलनि देवि, सम्हारू
धैरज धरू वृथा रोदन तजि पुरना शोक बिसारू।
अगिला बात अहाँ जे किछ अछि से सब नहि कहि सकबे
हमहूँ सुनबामे अक्षम छी फाटल उर कत रखबे॥

81.
कोनो तरहें धैरज धय ओ अपनहि होश सम्हारल
जलसँ पोछि आँखि मुख बाला कहुना वचन उचारल।
राजकुमर, कहब की बाँकी अछि जे नहि कहि सकबे
सुनलहुँ अहूँ वज्र-सन वाणी की आगू नहि सुनबे॥

82.
किन्तु जाहि आशासँ हम जीवन केर भार बहै छी
कष्ट सहै छी असहनीय ई से आश्चर्य कहै छी।
तखन तीव्र शोकक मरणेतर प्रतीकार नहि देखल
हिनका संग जरब निश्छल भय दुख उसरत ई लेखल॥

83.
कहलहुँ चिता पजार तरलिका, जरबे वैश्वानरमे
कोना जरायब सुन्दर तनु हिनकर लय डूबब सरमे।
ई सब मरबा केर विधान हम करै छलहुँ भय चंचल
तावत दिव्य पुरुष भू उतरल हिमदु्रति तजि नभ अंचल॥