कादम्बरी / पृष्ठ 5 / दामोदर झा
19.
सकल कला लगबैत विधाता एकरा जँ निरमओलनि
तँ की हेतु परस-निन्दित चण्डाल जातिमे रखलनि।
ई सब राजा मनहि बिचारथि ढीठ जकाँ ता कन्या
शान्तभाव सँ कय प्रणाम सबके अवलोकल वन्या॥
20.
सूगा सहित सुवर्णक पिजड़ा दुहू हाथसँ धयने
प्रविशल सङ चण्डाल बूढ़ एक सौम्य स्वरूप् बनओने।
बूढ़ भील से पिजड़ा लय कर छितितल जानु अड़ओने,
नम्र भावसँ कहलक भूपक मुखपर दृष्टि गड़ओने॥
21.
वैशम्पायन नामक ई शुक अद्भूत रत्न भुवनमे
रत्नाकर सम अपनेके सब रत्नक वास भवनमे।
ई विचारि हमरा सबहुक स्वामीक तनूजा अयली
प्रभु दरसन नहि शून्य उचित शुकरत्न उपायन लयली॥
22.
ई सूगा अछि सकल कलाविद काव्यरसक अवधारक
चारू बेद पुराण कथा सब शास्त्रक तत्त्वविचारक।
ई कहि पिजड़ा राखि भील नम्रता सहित पछआयल
राजा केर मानसके अजगुत निज वश कय अगुआयल॥
23.
इंगित पाबि नृपक प्रतिहारीकर पिजड़ा मुख खूजल
बाहर भय दहिना चरणहुके ऊपर कय शुक बाजल।
जय कहि वेदमन्त्रसँ पुनि राजाके आशिष देले
कवि विद्वान जकाँ ई आर्या पढ़ि संस्तुति-रत भेले॥