कादम्बरी / पृष्ठ 7 / दामोदर झा
30.
किछ छन कय विश्राम मनहिं से सुमिरल बात सभाके
अनबाआल अन्तःपुरमे सुखसँ निबसल सूगाके।
कंचुकि हाथे आयल तकरा पूछल सुखवासादिक
तदनन्तर कौतुकी हृदयसँ जीवन वत्तान्तादिक॥
31.
वैशम्पायन, निज परिचय कहु कतय जन्म केर ठामे
निबसल कतय कहाँसँ भेलहुँ शास्त्र कला केर धामे।
बूझि पड़ै अछि जातिस्मर अपने छी क्यो स्वर्वासी
पक्षिजातिमे नहि होइछ छितिमे एतबा गुणराशी॥
32.
ब्राह्मण जकाँ अहाँक नाम के वैशम्पायन रखलक
चण्डालक घर नाम एहन एहि जगमे नहि क्यो सुनलक।
पुनि अन्त्यज गृहवास हेतु की कोना एतए छी आयल
सबटा कहु कोना अपने निज जीवन काल बितायल॥
33.
सदर भूपतिसँ पूछल शुक मनमे छनहि बिचारल
पुनि सब कथा सुमिरि किछ सहमल आखर भखहिं उचारल।
महाराज, अपने केर आज्ञा हम शिर ऊपर बहै छी
बड़की टा ई कथा सुनु सब आद्योपान्त कहै छी॥