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कादम्बरी / पृष्ठ 84 / दामोदर झा

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40.
कहबनि पितु आज्ञावश हम उज्जयिनी अयलहुँ
पुरबिल पापे पुनि नहि जा पद शीश झुकलयहुँ।
ज जीबैत रहब तँ पुनि हम निश्चय आयब
देवी चरणक दरसन सुखसँ हृदय जुड़ायब॥

41.
ई कहि घोड़ा चढ़ले उज्जैनक पथ चरले
तेज चालि घोड़ा सैनक दुइ शत अनुसरले।
वनमे पत्रवाहके आगू मार्ग देखाबय
बाघ सिंहके अश्व टाप रव दूर भगाबय॥

42.
बड़ बड़ गाछ खसल मारगके टेढ़ कहै छल
नदी पहाड़ी द्रुत प्रवाह पथ रोकि बहै छल।
चहु दिशि हिंसक जानवरो चिघाड़ करै छल
धीरधुरीणहुँके से सुनि सुनि हृदय डरै छल॥

43.
कुमर चलथि आगू सेना सब छल अनुसरिते
अपथ कुपथ नहि गणय सबहिं छल कलरव करिते।
दिन भरि चलला कुमर कतहु नहि जनपद पओलनि
भानुमान पश्चिम दिशि अस्ताचल लगिचओलनि॥

44.
रक्तध्वज दूरहिसँ देखल तरु पर वनमे
मन मनुष्य सम्भावि ततय पहुँचल किछु छनमे।
देखल अति प्राचीन चण्डिका केर भवन छल
चारू दिशि लोहाक गजाड़ा गड़ल सघन छल॥