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कानी बेटी का ब्याह / शिवबहादुर सिंह भदौरिया

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चक्करदार
जीनों में चढ़ना,
पीतल पर
सोने को मढ़ना,
सम्भावनाओं के बूते
कर्ज-पर-कर्ज लादना,
आहत स्वाभिमान को
हँसी की गोद में बिठाना
पुचकारना,
सही बातें
न किसी से कहना न सुनना,
सहना....केवल सहते रहना-
हर अन्तर्दाह,
जिन्दगी है
या
कानी बेटी का ब्याह।