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काफल का पेड़ / कुमार कृष्ण
Kavita Kosh से
मेरे जन्म से भी बहुत पहले से खड़ा है
गाँव की पगडण्डी पर काफल का पेड़
स्कूल से लौटते
भूख में दौड़ते
पता नहीं कितनी बार भरी हैं उसने
हमारी जेबें
जब तक रहेगा गाँव में
काफल का पेड़
तब तक रहेगी पृथ्वी पर मिठास
शायद सौ बरस से भी अधिक जीता है-
काफल का पेड़
काफल पकने की खबर
सुनाने वाला पक्षी
आ जाता है कहाँ से काफल पकने पर
कोई नहीं जानता इसे आज तक
कितनी अजीब बात है-
वह नहीं खाता कभी काफल
फिर भी गाता है लगातार-
काफल पाके- काफल पाके
सख्त नफरत है काफल को
शहरी बगीचों में उगना
उसे कतई बर्दाश्त नहीं
अपनी जड़ों से छेड़छाड़
काफल जब कभी आता है नज़र शहर में-
ले आता है अपने साथ
पूरे गाँव और जंगल की मिठास
वह जंगली फल
तमाम शहरी फलों से बहुत मीठा है।