भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काम / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
काम कितने महत्वपूर्ण बन जाते हैं कभी-कभी
उनके सिवा कुछ भी नहीं सूझता उस वक्त
हो जाता है शरीर पसीने से लथ-पथ
और पॉंव जकड़ जाते हैं थकान से
मन में बस एक ही बात गूंजती है
कब काम खत्म हो और
लौट जायें अपने घर
लेकिन काम कभी खत्म होते नहीं
सौंप जाते हैं, दूसरे काम
अपनी जगह पर
जाते-जाते भी ।