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कामकाजी औरत की आँख में / विवेक चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
टूटते खपरैल से झाँकता है नीला आसमान
वहाँ से धागा निकाल बुन रही है औरत एक कालीन
आँगन में बिछी है लाल मुरम
उससे लाल बटन बनाकर
औरत टाँक रही है बच्चे के अँगरखे में
दरकती दीवारों पर ऊग रहा है जो
पीपल का पौधा
उधर से हरा रंग खींच चढ़ा रही है औरत
लिफाफे के कागज पर
समय का चक्र सबसे
तेज गति से घूम रहा है औरत की सिलाई मशीन में
और आज का सबसे सुंदर और सजीला सपना
दिख रहा है इस कामकाजी
औरत की आँख में।