कामरेड, तुम भी न! / कुमार विमलेन्दु सिंह
कैसे हो भाई?
और कल मंदिर क्यों नहीं आए?
मंगरु और घीसू तो आए थे
बड़ी देर तक हमने बातें की
मेरी बच्ची को उन्होने प्रसाद का पेड़ा भी दिया
पता है? हम सब बोल रहे थे
एक ही जगह खड़े होकर
मुझे बड़ा अच्छा लगा
मैंने बिना माइक के
बिना गर्दन में मफ़लर या गमछा लपेटे
उनसे जो भी कहा, उन्होने सुना
उन्होने कहा भी
बिना तुम्हें या तुम्हारी बातों को याद किए
तुम कितनी देर तक
एक जैसा रह लेते हो
जान बुझ कर?
ज़बरदस्ती यह झोला
क्यों लिया है तुमने?
श्री लेदर्स वाले बढ़िया बैग बनाते हैं
और स्वदेशी भी हैं
और तो और
मुसहर टोली के बच्चे भी वही बैग रखते हैं
अब तो सादगी का भी द्योतक नहीं रहा तुम्हारा झोला
तुम कितने प्रेम से क्रीम लगाकर
दाढ़ी बनाते थे
और अब व्यस्त दिखने के लिए
कैसी खिचड़ी दाढ़ी उगा रखी है?
सोचते भी नहीं कि
गरीब असलम के सैलून का क्या होगा
जानते हो?
मैं तो साफ़ सुथरा
शाकाहारी रह के भी मार्क्स पढ़ लेता हूँ
मुझे समझ भी आ जाता है
अब तो ज़्यादातर लोग सूट पहन के भी
क्रांति की कहानियाँ
कह-सुन ले रहे हैं
अच्छा अच्छा अब समझा
तुम इसलिए उदास हो
कि शोषण लगभग खत्म हो गया
तो तुम किसे प्रेरित करोगे?
ज़्यादातर लोग सामाजिक समानता के रास्ते पर हैं
तो कैसी क्रांति की कहानियाँ सुनाओगे?
मतलब भारतवर्ष में तुम्हारा काम नहीं है
और एक अभिनेता कि तरह
अपना मेक अप करने में
जो तुमने समय दिया
वह व्यर्थ प्रतीत हो रहा है तुम्हें
कोई बात नहीं मित्र
आओं मिलकर काम करते हैं
प्रति व्यक्ति आय के साथ
जनसंख्या विस्फोट की भी बात करते हैं
दास कैपिटल के साथ
कुछ और भी अच्छी चीजें, पढ़ते हैं
कामरेड, तुम भी न...
इतना नाराज क्यों होते हो
क्या कहा?
किसी की जय नहीं बोलोगे?
कोई बात नहीं मित्र
तुम बस जल्दी स्वस्थ हो जाओ
और साथ आओ
इस महान देश के लिए
तब तक के लिए-लाल सलाम
चलो अब तो मुस्कुराओ