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काया / हरीश बी० शर्मा

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एक सौ आठ मिणियां में
पिरोइज्योड़ी
धोळी-काळी
तुळछी-चन्दण, मोती का
काठ री माळा
जिकी मिळै
लख चोरासी में एक बार
घणखरा पार कर जावै
घणखरा फेर आवै है
भुगतण नैं
ओ संसार।