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काया भूखी दर्जिन है / बी. एल. माली ’अशांत’

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हेली मेरी !
बांच ले तू धरती का श्रृंगार
गगन का दुख बांच ले
जीवन सृजन है ।

हेली मेरी !
सुख सूरतों की मंजिल चल
बता दे रास्ता सही बोलने वाला
सूरतें जग का दर्पन हैं ।

हेली मेरी !
हिंगलू के पलंग बैठ
सुना दे भीतरी बातें
काया भूखी दर्जिन है ।

हेली मेरी !
मनुष्य को निर्भय होने की सुध दे
वह बनाता है
जग को डूबोने के स्थल
अर्धराजन मांड कर बता दे
करतब मनुष्य-योनी के
जग-जीवन अर्पण है ।

हेली मेरी !
गगन-मंडल में पड़ गई है तरेड़
जीवन की सुध दे
निर्भय कर दे मनुष्य-जाति को

हेली मेरी !
रास्ता जीवन का बुहार
जीवन सृजन है ।

अनुवाद : नीरज दइया